वृक्ष कम होंगे तो कम होगा आक्सीजन .



झारखण्ड में प्रदुषण बढ़ने का भी खतरा होगा.
द्वारा
डा. नितीश प्रियदर्शी



आज पुरे विश्वा में जंगल का विनाश हो रहा हे. जंगल में लगी आग के रूप में या जंगल की कटाई के रूप में . वृक्ष हमारे वातावरण को संतुलित करते हैं. एवं जल चक्र को बनाये रखने में भी सहायक होता है. यह भू छरण को भी रोकता है. जंगल के विनाश से इनपर तो असर हो रहा हे किन्तु सबसे खतरनाक असर हमारे वातावरण में मौजूद प्राणवायु आक्सीजन पर दिख रहा है अब माना जाने लगा है की वृक्षों के कम होने से वायुमंडल में मौजूद आक्सीजन (२० %) में भी कमी होगी जो मनुष्य एवं दूसरे जंतुओं के लिये भी खतरनाक संकेत है. वृक्ष प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा वातावरण से कार्बन ड़ाइओक्सइड को लेकर आक्सीजन मुक्त करते है. इस आक्सीजन को जीव जीवित रहने के लिये ग्रहण करते है. पृथ्वी पर वृक्षों की यदि कमी होने लगेगी तो निश्चित रूप से इसका असर आक्सीजन की मात्र पर होगा.

वृक्ष के केवल कटने से ही नहीं; जंगल में आग लगने से भी आक्सीकरण की कमी हो सकती हे क्योंकि जलने से भी आक्सीजन का इस्तेमाल होता है. आज जिन पौधे या वृक्षों के बदौलत हमारे पृथ्वी पर आक्सीजन है हम उन्ही को कम करते जा रहे हैं. एक नए शोध से यह ज्ञात हुआ है कि १९८९ और १९९४ के बीच आक्सीजन कि मात्रा पृथ्वी पर २ भाग प्रति मिलियन प्रतिवर्ष के हिसाब से कम हुई है. कम होने कि गति काफी कम होने के कारण हम इसकी घटने कि गति पर नजर नहीं रख पा रहे हैं.

वृक्ष न केवल आक्सीजन देता हे बल्कि वातावरण को भी शुद्ध एवं ठंडा रखता है. अगर झारखण्ड की ही बात ले तो पिछले कुछ वर्षों मौसम में काफी बदलाव आ रहा है. वर्षा कभी औसत से कम या नहीं हो रही है. रांची जैसा शहर जो अपने मौसम के वजह से मशहुर था आज गर्म होते जा रहे है. इसका एक प्रमुख कारण है रांची के आस पास वृक्षों का कम होते जाना.

वर्षा के कम होने की वजह से यहाँ पेयजल के अस्तित्व पर भी खतरा पैदा हो गया है. वातावरण में कार्बन ड़ाइओक्सइड के बढ़ने का भी खतरा पैदा हो गया है. वृक्षों के कम होने से झारखण्ड के वातावरण में मौजूद आक्सीजन पर भी इसका बुरा प्रभाव हो सकता है जिसका असर आने वाले समय में दिख सकता है. अगर हमारे प्रदेश में आक्सीजन की मात्रा में जरा सा भी कमी आया तो ये कहने की जरुरत नहीं की हमारा क्या हाल होगा. प्रदुषण भी खतरनाक तरीके से बढ़ेगा वो अलग.



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